बीकानेर संभाग में पहली बार (Pioneer in Advance Cardiac Technology) गंगानगर से जयपुर रेफर किये गये मरीज का आयुष्मान हार्ट केयर सेन्टर बीकानेर में हार्ट की नस में भारी मात्रा में जमे चुनें (Calcium) को नवीनतम तकनीक आर्बिटल एथीरेक्टॉमी (Orbital Atherectomy)से हटाया गया ओर दो स्टंट सफलता पुर्वक लगाये गयें। आर्बिटल रेथिरेक्टॉमी रोटाअब्लेशन से अधिक कारगर एवं सुरक्षित तकनीक है जो भारत में अभी लॉन्च हुई है।
आर्बिटल एथीरेक्टॉमी (Orbital Atherectomy) क्या है?
आर्बिटल एथीरेक्टॉमी (Orbital Atherectomy) एक चिकित्सीय प्रक्रिया है जो हृदय की धमनियों में जमा होने वाले कठोर कैल्शियम या प्लाक (चर्बी और अन्य पदार्थ) को हटाने के लिए की जाती है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से कोरोनरी आर्टरी डिजीज (Coronary Artery Disease) के इलाज में उपयोग की जाती है, जहाँ धमनी में प्लाक जमा होने से रक्त का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है।
आर्बिटल एथीरेक्टॉमी कैसे काम करती है?
- प्रवेश स्थल: सबसे पहले, मरीज की कलाई या जांघ की धमनी में एक छोटा चीरा लगाया जाता है।
- कैथेटर का उपयोग: एक पतली ट्यूब (कैथेटर) को चीरे के माध्यम से धमनी में डाला जाता है और उसे धीरे-धीरे उस स्थान तक पहुँचाया जाता है जहाँ प्लाक जमा हुआ है।
- डायमंड कोटेड क्राउन: कैथेटर के सिरे पर एक छोटा सा डायमंड-लेपित क्राउन होता है, जो उच्च गति से घूमता है। इस घूमने वाली डिवाइस को प्लाक वाले क्षेत्र में रखा जाता है।
- घूर्णन और प्लाक का विखंडन: जब यह क्राउन घूमता है, तो यह प्लाक और कठोर कैल्शियम को बहुत छोटे टुकड़ों में विखंडित कर देता है। ये छोटे टुकड़े इतनी बारीक होते हैं कि वे रक्त के साथ मिलकर शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
- रक्त प्रवाह में सुधार: प्लाक को हटाने के बाद, धमनी का अवरोध दूर हो जाता है और हृदय तक रक्त का प्रवाह सामान्य हो जाता है।
आर्बिटल एथीरेक्टॉमी कब की जाती है?
आर्बिटल एथीरेक्टॉमी का उपयोग तब किया जाता है जब धमनियों में कैल्शियम का जमाव बहुत अधिक होता है और पारंपरिक तकनीकों, जैसे एंजियोप्लास्टी (जहाँ बैलून का उपयोग करके धमनी को चौड़ा किया जाता है), से यह अवरोध नहीं हटता। यह विशेष रूप से उन रोगियों के लिए फायदेमंद है जिन्हें हृदय का बायपास सर्जरी कराने में अधिक जोखिम होता है या जो अन्य कारणों से उच्च जोखिम वाले माने जाते हैं।
इस प्रक्रिया का उद्देश्य धमनी में रक्त प्रवाह को बहाल करना और हृदय तक ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति में सुधार करना है, जिससे हृदयाघात (हार्ट अटैक) या अन्य हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा कम हो सके।